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लेखनी कहानी -08-Jul-2022 यक्ष प्रश्न 1

यक्ष प्रश्न  - 2 


कोरोना काल का प्रथम लॉकडाउन चल रहा था । उस समय हमारे मौहल्ले के थानेदार जी ने मुझसे कुछ प्रश्न पूछे थे जिनके मैंने अपने ज्ञान के अनुरूप ठीक ठीक उत्तर दिए थे वे मेरी रचना "यक्ष प्रश्न  - 1" में मिल जाएंगे । अब आगे

श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ समाप्त कर मैं अल्पाहार हेतु डाइनिंग टेबल पर आ गया । श्रीमती जी अल्पाहार तैयार कर ही रहीं थीं । सुबह सुबह मुझे बड़ी तीव्र क्षुधा सताती है । मैं क्षुधा से त्रसित होकर कहने लगा

"प्रिये प्राणेश्वरी , यदि इसी प्रकार से आप अपने कोमल कोमल हस्त द्वयों का संचालन करती रहेंगी और हम अपने त्रस्त नेत्रों से आपके कर कमलों द्वारा बनाये जाने वाले खाद्य पदार्थों को ताड़ा करेंगे और हमारी नासिका उन स्वादिष्ट पकवानों की गंध का आस्वादन करेंगी तो हमारा तो फोकट में ही अल्पाहार हो जाया करेगा । बस, और कुछ नहीं हमारे पेट में भूख से कुलबुलाते हुए चूहों पर दया भाव आ रहा है देवि कि वे हमें और आपको नाना भांति के शाप से सुशोभित कर रहे होंगे । क्योंकि अब तो दस बज गये हैं और यह समय हमारे पेट के चूहों का सोने का समय है । अगर आज्ञा दें तो मैं उन्हें सुला दूं" ?

मेरी इस मिश्री सी  मीठी वाणी का असर होना ही था , तुरंत हुआ भी । उन्होंने आग्नेय नेत्रों से हमें घूरा जैसे के वे हमें कामदेव की तरह भस्म कर देंगीं । मगर हम भी कम ढीठ नहीं हैं । बेशर्मी से मुस्कुराते रहे । इससे वे चिढ गईं और कहने लगीं
"आपके पास तो इन दिनों कोई काम धाम है नहीं इसलिए आपका सारा ध्यान "चरने" में लगा रहता है । हम स्त्रियों के तो जीवन दूभर कर दिया है इस सत्यानाशी कोरोना ने । पहले ही घर में बहुत काम रहता था । अब आप और बच्चे 24 घंटे घर में ही पड़े रहते हैं । मेरा तो सारा दिन और आधी रात किचिन में ही गुजर जाता है । पर आपसे तो इतना भी नहीं बनता है कि मेरी कुछ मदद करवा लो । पर नहीं । जले पर नमक छिड़कने की तो आदत सभी मर्दों की होती है । आप कोई अलग थोड़े हो । हरदम मीन-मेख निकालते रहते हो । थोड़ा चैन लेने दो पेट के चूहों को । देखते नहीं कि खा खाकर मोटे हो गये हैं वे । थोड़ा व्रत करो जिससे पेट खराब नहीं हो । तब तक "न्यूज" देख लो" ।

इस मीठी झिड़की से तबीयत प्रसन्न हो गई । जब तक ऐसी झिड़की खा नहीं लें, मजा ही नहीं आता है । मुस्कुराते हुए मैंने अपना टीवी ऑन कर समाचार चैनल लगा दिया । समाचारों में  मदिरा की दुकानों पर लंबी लंबी पंक्तियां देखकर श्रीमती जी आश्चर्यचकित रह गयीं । पास में बैठे दोनों पुत्र अर्जुन और नकुल भी इस समाचार को आश्चर्य से देखने लगे । लोग एक दूसरे के ऊपर चढ़े जा रहे थे । शराब के ठेकेवाले ने यद्यपि सोशल डिस्टेसिंग के लिए जमीन पर गोले बना रखे थे लेकिन चार पांच हजार की भीड़ में बेचारे गोले कैसे और कब तक टिकते ?

लोगों में गजब का आकर्षण था "अंगूर की बेटी" का । लॉकडाउन के कारण लोग "अंगूर की बेटी" से मिल नहीं पा रहे थे न । शायद इसीलिए बेचैन थे । और बेचैन भी इतने कि मन ही मन गाते थे "काटे नहीं कटते दिन ये रात , कहनी सुननी थी बस ये बात , लो आज मैं कहता हूं , आई लव यू" । अब जब सरकार ने लोगों को अपना "गला तर करने" की छूट दे दी तो फिर कैसा लॉकडाउन ? सब के सब टूट पड़े "मधुशाला" पर । वैसे भी महानायक के पिताजी "मधुशाला" की महिमा का बखान कर ही चुके हैं । अतः मदिरा प्रेमियों के पूज्य आदरणीय हरिवंश राय बच्चन जी की "मधुशाला" से प्रेरित होकर आबाल वृद्ध महिला ,पुरुष सब लोग बेझिझक होकर मदिरा के एक गिलास के लिए मदिरा की दुकान पर एकत्रित हो गये । यहां पर मुच्छड़ थानेदार की दबंगई कोई काम नहीं आई । इस अनियंत्रित भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कुछ पुलिस के जवान वहां पर तैनात थे जो बीच बीच में दण्डास्त्र का प्रयोग कर माहौल को थोड़ा और मनोरंजक बना रहे थे । पर वे कब तक इस पगलाई भीड़ को वश में रख पाते ? उन्होंने भी अपने हथियार डालकर दिए ।

एक खबरिया चैनल का संवाददाता एक व्यक्ति का साक्षात्कार लेने का प्रयास कर रहा था लेकिन वह व्यक्ति साक्षात्कार के लिए मना कर रहा था । शायद वह अपने आपको नशेडिय़ों की सूची में नहीं रखना चाहता था मगर "नशे" के बिना रहना भी नहीं चाहता था । उसे एक तरकीब सूझ ही गई इस परिस्थिति से निबटने की । और यहां पर मास्क उसकी ढाल बनकर उभरा । उसने मास्क को अपने  चेहरे पर कुछ इस तरह लगा लिया कि इससे उसका चेहरा लगभग पूरा  छुप गया था । 

संवाददाता ने पूछा , " आपने अपना चेहरा क्यों छुपा लिया है ? आप साक्षात्कार से क्यों बचना चाहते हैं " ?
" श्रीमान , अगर टीवी पर मेरा चेहरा मेरी भार्या  ने देख लिया तो वह मेरा भुर्ता बनाकर खा जायेगी । मैं अपनी भार्या से यह कहकर आया हूं कि मैं अंगूर लेने जा रहा हूं जबकि मैं यहां पर अंगूर नहीं बल्कि "अंगूर की बेटी" लेने आ गया हूं ।  आपका चैनल तो लाइव टेलीकास्ट कर रहा है इसलिए सब कुछ साफ साफ दिख रहा है । यदि उसने मुझे अपने टीवी पर अंगूर की बेटी के लिए पंक्तिबद्ध होते देख लिया तो मेरी अगली पिछली सात पुश्तें मुझे याद दिला देंगी । इसलिए मुझे तो बख्श दो भैया । किसी और का साक्षात्कार ले लो " । और यह कहकर वह चलता बना ।

उस संवाददाता ने भी उस "गरीब प्राणी" को छोड़ दिया । लोग पत्रकारों को कसाई समझते हैं मगर वे इतने भी निर्दयी नहीं होते हैं । "जोरू के गुलामों" पर तो मेहरबानी कर ही देते हैं । वैसे भी पत्रकार "गरीबों" और "किसानों"  का पूरा ध्यान रखते हैं । किसी वी आई पी व्यक्ति को ये पत्रकार लोग एक  गरीब किसान तक बता कर उसके लिए बैटिंग भी करते नजर आते हैं । आजकल पत्रकारिता यही रह गई है भैया ।

संवाददाता की नजर 25-26 साल के एक युवक पर पड़ी । उसने उससे पूछा ।
"आप कबसे लाइन में खड़े हो" ?
"जब से सरकार ने ठेके खोलने की घोषणा की है तबसे" ।
"मतलब कल से" ।
"जी" । लड़के ने बेशर्मी से कहा ।
"रात को भी यहीं रहे थे क्या" ?
"जी , यहीं सोया था । घोड़े की तरह सोने का एच अलग ही आनंद है ।  कल  खाना साथ ही लाया था । सुबह का नाश्ता भी लाइन में खड़े खड़े ही कर लिया है । बस अब तो यही प्रार्थना है कि जल्दी से यह ठेका खुल जाये तो अपनी जिंदगी में भी खुमारी छा जाये"  । युवक बहुत उत्साहित नजर आ रहा था ।

"कितनी लेकर जाओगे" ? पत्रकार उसे छोड़ने के मूड में नहीं था शायद ।
"दो तीन कार्टून तो लेकर जाऊंगा ही । पूरा डेढ़ महीना हो गया है इसके बिना । ये डेढ महीने कैसे बीते अब क्या समझाएं आपको ? हमारी हालत देखकर ही समझ सकते हो । ये देखो, हलक पूरा सूख गया है" । और उसने अपना पूरा मुंह खोलकर सूखा हलक पत्रकार को दिखा दिया । पपड़ी पड़ गई थी बेचारे के मुंह में । इतनी दयनीय स्थिति तो मैंने आज तक कभी किसी की नहीं देखी थी । उसकी दयनीय हालत देखकर पत्रकार को भी उससे सुहानुभूति हो गई थी ।

खबरिया चैनल उसी सूखे हलक को ब्रैकिंग न्यूज बता बता कर बार बार उसी न्यूज को दिखाये जा रहा था और सरकार को उसकी निर्दयता के लिए बार बार कोस रहा था और लोगों को सरकार के खिलाफ भड़का भी रहा था । जनता से बार बार पूछे जा रहा था "क्या किसी को गला तर करने का कोई अधिकार नहीं है " ? कैसी तानाशाही में जीने को मजबूर हैं लोग । और "क्राइम टाइम" में बकैत कुमार की बकैती चलने लगी ।

इसी बीच श्रीमती जी ने अल्पाहार टेबल पर लगा दिया था । मैं अल्पाहार करना शुरू करता इससे पहले ही मोबाइल बज उठा । 
मैंने फोन रिसीव किया । उधर से एक कड़कदार आवाज आई । 
आप गोयल साहब बोल रहे हैं ? 
मैंने कहा , " आपने फोन‌ गोयल साहब को लगाया है तो वही बोलेंगे" । 
वो सज्जन खिसियानी हंसी हंसते हुए कहने लगे । 
"गोयल साहब , आपने मुझे पहचाना नहीं शायद ? मैं आपका शिष्य मुच्छड़ थानेदार बोल रहा हूं" । उसने खीसें निपोरते हुए कहा ।

किसकी मजाल है जो थानेदार को नहीं पहचाने ? जेल थोड़े ही जाना था । तो तुरंत कहा "पहचान लिया जी , पहचान लिया । बताओ आज कैसे याद किया" ? हमने आजिजी करते हुए कहा ।

"आपने उस दिन कहा था ना कि कोई भी आदमी बिना काम कभी फोन नहीं करता है , तो मैंने भी किसी काम से ही फोन किया है आपको "। उसकी बेशर्मी साफ दिखाई दे रही थी ।

इतना सुनकर मेरा सीना 58 इंच का हो गया । 56 इंच पर तो हमारे देश में "किसी" ने पेटेंट करवा रखा है इसलिए हम 56 इंच का सीना नहीं कर सकते, इसलिए 58 इंच का कर लिया । अपनी बुद्धिमत्ता श्रीमती जी को दिखाने के लिए स्पीकर ऑन कर श्रीमती जी की ओर देखकर थानेदार से बोला 
"बताओ श्रीमान , क्या काम है" ? 

मेरे पुत्र अर्जुन और नकुल का ध्यान भी अब मेरी ओर आकृष्ट हो गया था । वे भी अब मेरी वैल्यू समझने लगे थे । मुच्छड़ थानेदार  कहने लगा "आपसे जो उस दिन यक्ष प्रश्न पूछे थे ना मैंने , उसका वीडियो एक सिपाही ने बना लिया था और उसे सोशल मीडिया पर  वायरल कर दिया था । वह वीडियो सोशल मीडिया पर छा गया । हमारे एक लाट साहब के पास भी वह वीडियो पहुंच गया । बस तब से ही रट लगा रहेहैं कि मैं आपको लेकर उनके ऑफिस में आ जाऊं । इसलिए आप बतायें कि आप कब यहां पधारेंगे" ?

इतना सुनकर मेरा मस्तक गर्व से ऊंचा हो गया । मुझे सैलिब्रिटी की सी फीलिंग होने लगी । मैंने एक गर्व भरी  नजर से श्रीमती जी को देखा । उन्होंने वहीं से मेरी बलैंया ले ली । 

मैंने कहा, " मैं आपके ऑफिस में तो नहीं आ पाऊंगा " ।
वो बोले , "आप कब तक फ्री हो जायेंगे ? मैं आपको लेने के लिए आ जाऊंगा । आप समय बता दीजिए फिर हम दोनों साहब के पास चल चलेंगे "। 
मैंने कहा कि यह तो बताओ , वहां करना क्या है ? मुझे थोड़ी चिंता हुई ।
"अजी,  साहब के यक्ष प्रश्नों के उत्तर देना है और क्या करना है" । चिंता का निवारण करते हुए वे बोले ।

अब मुझे अपना महत्व ज्ञात होने लगा । मैंने सोचा कि प्यासा कुऐ के पास आता है या कुआं प्यासे के पास जाता है ? हिसाब से तो प्यासे को कुऐ के पास जाना चाहिए । फिर मैंने सोचा कि यही अवसर है जब ज्ञात होगा कि मेरी कितनी वैल्यू है । इसलिए मुच्छड़ थानेदार से कहा 
"थानेदार जी , आजकल मैं श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ सुबह शाम करता हूं । मैंने इस अवधि में "पदवास" का प्रण ले रखा है । पदवास मतलब पैरों को विश्राम । इसलिए मैं आजकल अपने घर से बाहर नहीं आ जा रहा हूं । इसलिए मैं चल नहीं पाऊंगा । कृपया साहब को यह अवगत करवा दें" । 
थानेदार सोच में पड़ गया । थोडी देर बाद बोला "ये पदवास कब तक चलेगा आपका "? 
अब मुझे भी रस आने लगा था , बोला "कोई अवधि निर्धारित नहीं है इसकी । जब तक श्रीमद्भगवद्गीता पाठ संपूर्ण नहीं हो जाता तब तक चलेगा । और गीता पाठ कब तक चलेगा, बता नहीं सकता हूं । आपके साहब अगर मेरी कुटिया में आ सकते हैं तो स्वागत है उनका" । 

मुच्छड़ थानेदार को मेरा जवाब बहुत अखरा । पुलिस को ना सुनने की आदत नहीं है ना , मगर वो कर भी क्या सकता था । उसने एक बार डराने वाले अंदाज में कहा
"देख लो, साहब का मामला है । साहब नाराज ना हो जायें । बड़े साहब हैं उनकी नाराजगी ठीक नहीं होगी, गोयल साहब" । उसने धमकाने के लहजे में कहा

मैंने अपने बड़े पुत्र अर्जुन जो उच्च न्यायालय में प्रख्यात एडवोकेट है की ओर देखा । उसने इशारे से मुझे आश्वस्त कर दिया कि चिंता ना करें, वो सब  संभाल लेगा । अब मुझे भी जोश आ गया ।
मैंने कहा कि मैं आज दोपहर में दो से तीन बजे तक फ्री हूं । साहब को बता देना । और मैंने फोन काट दिया ।
थोड़ी देर में उसका फिर से फोन आया और दो से तीन बजे का समय साहब के लिये आरक्षित करवा लिया । 

श्रीमती जी को अब मुझ पर गर्व होने लगा । ज्यादातर पत्नियां पति को भाव कम ही देती हैं । उनके लिये कामवाली बाई, धोबी, माली, चौकीदार जैसे लोग ज्यादा महत्वपूर्ण है बजाय पति के । पति जैसे तुच्छ प्राणी को क्या भाव देना ? लेकिन आज के वार्तालाप ने उनका हृदय परिवर्तन कर दिया था  । अपनी कृपा का प्रसाद देते हुए उन्होंने आज खाने में मेरी पसंदीदा डिश "खीर" बनाई । खाने का आनंद दुगना हो गया था आज ।

ठीक दो बजे साहब आ गये । थोड़ी औपचारिकताओं के पश्चात वे सीधे मूल विषय पर आ गए। 

"गोयल साहब , आपने जिस तरह यक्ष प्रश्नों का उत्तर दिया था उनसे मैं आपका भक्त हो गया हूं । आपके ज्ञान की कीर्ति चारों ओर फैली रही है । हे ज्ञानी श्रेष्ठ , यदि मुझ पर भी आपकी कुछ अनुकंपा हो जाये तो मेरा भी कुछ उद्धार हो जाये । कुछ मेरे भी यक्ष प्रश्न हैं यदि उनके उत्तर आपके पास हों तो कृपया देने का श्रम करें । आपकी विशेष कृपा होगी" ।
इतनी प्रशंसा आज तक किसी ने मेरी नहीं की थी और मैं कोई प्रशंसा के काबिल हूं भी नहीं । लेखक और सुंदरी अपनी प्रशंसा सुनकर इतरायें नहीं , यह असंभव है । मैंने देखा कि पहली बार कोई पुलिस का इतना बड़ा अधिकारी इतनी विनम्रता से मेरे साथ वार्तालाप कर रहा है , यह मेरे जैसे साधारण व्यक्ति के लिए आश्चर्यजनक घटना है । पुलिस का तो "ठुल्ला" भी "गुर्रा" के टूट पड़ता है । मुझे उनका व्यवहार बहुत अच्छा लगा ।  मैंने तो सुना था कि  पुलिस के अधिकारी अपने बॉस के सिवाय किसी की कोई बात सुनते ही नहीं हैं । उनसे मिलने के लिए कई घंटों तक इंतजार करना पड़ता है । लेकिन कहावत है ना कि " गरज बावड़ी होय " । शायद उसी का असर था कि वाणी में इतनी मिठास आ गई थी । खैर

मैंने भी उनसे अधिक विनम्रता दिखाते हुए कहा , " मैं कोई ज्ञानी वानी नही हूं श्रीमान । एक तुच्छ इंसान हूं । आपके प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास अवश्य करूंगा । और आप जिस आशा और विश्वास से पधारे हैं उसको बनाये रखने का पूरा प्रयत्न करूंगा । कृपया आप प्रश्न पूछें " 

उन्होंने प्रश्न पूछना प्रारंभ किया ।
"धूर्तता क्या है तात् " ।
"अपनी असफलताओं का दोष किसी और पर मंढने की कला को ही धूर्तता कहते हैं , वत्स" ।
"प्रगति का मार्ग क्या है " ? 
"दूसरों के कंधों को सीढ़ी बनाकर उन्नति करना ही प्रगति का मार्ग है" । 
"आसमान से भी ऊंचा क्या है , गुरुदेव" ? 
"अहंकार आसमान से भी ऊंचा होता है" । 
"ऐसी कौन सी वृत्ति है जो कभी समाप्त नहीं होती" ? 
"इच्छा वृत्ति , तात । जीवन में इच्छाएं कभी समाप्त नहीं होती हैं " ।
"सफलता का सूत्र क्या है, मुनिवर" ? 
"अपने आंख , कान खुले और मुंह बंद रखना ही सफलता का सूत्र है" । 
"धर्म क्या है प्रभु" ? 
"बहुत गूढ़ प्रश्न है वत्स। महाभारत में अर्जुन को धर्म का अर्थ समझाने में श्रीकृष्ण भगवान ने पूरी गीता का पाठ पढ़ाया था और अपने विराट स्वरूप का दर्शन भी करवाया था । तब जाकर अर्जुन को धर्म का अर्थ पता चला था । मैं प्रयास करूंगा कि आपको बहुत ही संक्षिप्त में इसे बताऊं " । मैंने उन्हें धर्म का अर्थ बताने की इस तरह चेष्टा की ।
"किसी पेशा और अपनी पारिवारिक स्थिति के अनुसार निष्काम भाव से कर्म करना उस मनुष्य का धर्म है वत्स ।  जैसे पुलिस का धर्म है निष्पक्ष जांच कर चालान / अंतिम प्रतिवेदन प्रस्तुत करना । एक पिता का धर्म है अपनी संतति का पोषण करना । मैं थोड़ा रुका और फिर कहा 
लेकिन आजकल इसकी परिभाषा कुछ बदल सी गई है"  । 

"आजकल क्या परिभाषा हो गई है इसकी , गुरूदेव ? हे तत्व विशेषज्ञ , मुझे भली-भांति समझाइये" ।  वे अधीर नजर आ रहे थे ।

मैंने कहा । तो सुनो वत्स । "अपना काम निकलवाने को ही धर्म कहते हैं आजकल । इसके लिए किसी गधे को भी बाप बनाना पड़े तो बनाओ । किसी के भी तलवे चाटो । किसी के कहने पर दिन को रात और रात को दिन भी कहो , मगर अपना काम अवश्य निकलवाओ । राजी से नहीं निकले तो धमकाकर निकलवाओ, यही सत्य का मार्ग है आजकल । और हां, अपना  मतलब निकलने के बाद उस व्यक्ति को लात मारकर भगा दो । अब उसकी कोई जरुरत नहीं है" ।

मेरे उत्तरों से प्रसन्न होकर नतमस्तक होते हुए वो बोले , हे परम ज्ञानी। आपने इतने कम शब्दों में इतनी विस्तृत परिभाषा दी है धर्म की , मैं तो कृतकृत्य हो गया । आपका यह उपकार मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंगा । यदि आप प्रसन्न हों तो मैं कुछ और प्रश्न करूं तात ?  

"निसंकोच पूछो , वत्स" । 

"लोकतंत्र के कितने स्तंभ होते हैं और कौन कौन से" ?

"पहले लोकतंत्र के चार स्तंभ होते थे । कार्यपालिका, व्यवस्थापिका , न्यायपालिका और मीडिया । अब पांचवां स्तंभ और जुड़ गया है इसमें" । 
"पांचवां स्तंभ कौन सा है , तात" ? 
लोकतंत्र के लिए सुदृढ़ अर्थव्यवस्था बहुत आवश्यक है और कोई भी अर्थव्यवस्था बिना मदिरा की बिक्री के  सुदृढ़ हो ही नहीं सकती है । इसलिए मदिरा ही लोकतंत्र का पांचवां स्तंभ है । देश की पूरी अर्थव्यवस्था इसी पर टिकी हुई है । इसके बिना सरकारें किस तरह त्राहिमाम कर रहीं हैं ये हमने अभी अभी लॉकडाउन में देखा है । इन पांचों में सबसे मजबूत स्तंभ यही नजर आ रहा है आजकल" । मेरे इस जवाब से वे बड़े प्रसन्न हुए । आगे प्रश्न पूछते हुए वे बोले
"वी आई पी लोग कौन होते हैं" ? 
"वे भाग्यशाली व्यक्ति जो सोने का चम्मच मुंह में लेकर पैदा हुए हैं । जिनके समस्त गुनाह माफ हैं । जिनसे शासन व्यवस्था चलती है । ये लोग फुटपाथ पर सोने वालों पर गाड़ी चढ़ा सकते हैं । करोड़ों के घोटाले करके, बैंकों को दीवालिया करके विदेश भाग सकते हैं। इनका बाल भी बांका नहीं हो सकता है इस व्यवस्था में । ऐसे लोग वी आई पी कहलाते हैं"।

मेरे उत्तरों से वे बड़े खुश हुए और साधो साधो कहकर उन्होंने अगला प्रश्र किया 
"मध्यम वर्ग क्या है" ?
"ऐसे मनुष्यों का समूह जो इस देश में केवल टैक्स और वोट देने के लिए ही  पैदा हुआ है, मध्यम वर्ग कहलाता है , वत्स "। 
"आम आदमी कौन है" ? 
"ऐसे लोग जिनकी सारी उमर दो जून की रोटी का जुगाड़ करने में बीत जाती है , आम आदमी कहलाते हैं" । 

उनके प्रश्नों की सूची बहुत लंबी थी लेकिन अब तीन बज गए थे इसलिए उन्हें मैंने यह कहकर बिदा किया कि उनके लिए एक बार और वार्तालाप करने का अवसर प्राप्त होगा । उन्होंने मुझे साधुवाद दिया और एक विशेष कार्ड प्रदान कर कहने लगे कि किसी प्रकार का कोई कार्य हो तो मुझे केवल फोन कर देना । 

मैंने उन्हें इस कृपा के लिए हार्दिक धन्यवाद प्रदान किया । वे और मुच्छड़ थानेदार दोनों वहां से चले गये । 

बाद में श्रीमती जी और पुत्र नकुल ने कार्ड देखकर कहा कि अब तो हमें कोई समस्या नहीं आयेगी ?

मैंने कहा , नहीं वत्स । आप अभी तक भारत की पुलिस और अधिकारियों को समझे ही नहीं हैं । ये जो कहते हैं वे करते नहीं और जो करते हैं वो कहते नहीं । बस इसे ड्राइंग रूम में सजाकर रख दो, जो लोगों को दिखता रहे और हमारा महत्व बढ़ता रहे । यह कार्ड उस बैंक खाते के चैक के सदृश है जिसमें कभी भी कोई रकम होती ही नहीं है । बस चैक को देख देख कर‌ ही खुश होते रहो ।  भुनाने की गलती कभी मत करो । चैक से पैसा कभी निकलेगा नहीं ।

मेरी इन बातों से श्रीमती जी और मेरे पुत्रों ने सहमति जताई । मुझ पर सबने आज गर्व किया । आज मुझे महसूस हुआ कि अपनी भी कोई इज्ज़त है । फिर सब लोग अपने अपने कार्यों में संलग्न हो गये । 

हरिशंकर गोयल "हरि"


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4 Comments

Gunjan Kamal

23-Sep-2022 08:45 AM

Nice

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दशला माथुर

20-Sep-2022 12:57 PM

Very nice

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shweta soni

09-Jul-2022 07:44 PM

Nice 👍

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